مسجد کے امام حضرات سے آج کل بالخصوص یہ سوال ہوتا ہے کہ کونڈے کی نیاز کب ہے؟ کچھ لوگ راقم الحروف سے بھی سوال کر رہے ہیں۔ اس تعلق سے محب گرامی پیکرِ اخلاص حضرت مولانا حسن نوری گونڈوی صاحب کی تحریر ابھی چند روز قبل نظر سے گزری ہے، اسے ہی آپ حضرات کی خدمت میں پیش کر دیتا ہوں۔
بائیس 22 رجب المرجب کو ہی کونڈے کی نیاز کریں
چند سال سے دیکھ رہا ہوں کہ لوگ 22 رجب کو کونڈے کی نیاز کرنے سے عوام اہلسنت کو روک رہے ہیں اور پھر روکنے کی جو وجہ بیان کرتے ہیں وہ انتہائی کمزور ہے
پہلی وجہ: سیدنا امام جعفر صادق کا وصال 22 کو نہیں 15 رجب کو ہوا ہے
دوسری وجہ: 22 رجب کو کرنے میں شیعوں کی مشابہت ہے
پہلی وجہ کا جواب
ایصال ثواب کبھی بھی کسی بھی تاریخ میں کیا جا سکتا ہے اس میں شرع نے کوئی پابندی نہیں لگائی ہے، اور مسلمانوں میں جو نیک کام رائج ہو اگر شرعاً ممانعت نہ ہو تو روکنا ہرگز درست نہیں،
دوسری وجہ کا جواب
شیعوں سے کسی بھی طرح مشابہت نہیں ہے، ان کی نیت اور ہے اہلسنت کی نیت اور، ان یا طریقہ الگ ہے اہلسنت کا الگ، وہ وصال سیدنا معاویہ کی خوشی میں اور ہم سیدنا امام جعفر صادق رضی اللہ عنہ کی محبت میں نیاز کرتے ہیں
ساٹھ سال پہلے: مفتی ابن مفتی، محقق ابن محقق، ولی ابن ولی سیدی سرکار مفتی اعظم ہند علیہ الرحمہ نے ایک فتوی پر دستخط فرمایا جو "22 رجب کو کونڈے کی نیاز کرنے پر ہے" لہذا اسے پورے ملک میں پھیلا دیجیے تاکہ جو لوگ روک رہے ہیں ان کی غلط فہمی دور ہو
اپیل:- سیدنا امیر معاویہ رضی اللہ عنہ صحابی رسول ہیں اور سیدنا امام جعفر صادق رضی اللہ عنہ اہلبیت اطہار سے فاتحہ دونوں حضرات کے نام دلائیں دونوں ہمارے ہیں۔
📝حسن نوری گونڈوی
मस्जिद के इमाम हज़रात से आज कल खास तौर पर यह सवाल पूछा जाता है कि कुन्डे की नियाज़ कब है? कुछ लोग मुझसे भी सवाल करते हैं. इसी सिलसिले में मुहिबबे गिरामी पैकर-ए-इखलास हज़रत मौलाना हसन नूरी गोंडवी साहब की तहरीर अभी चन्द दिन पहले नज़र से गुजरी है, उसे ही आप हज़रात की ख़िदमत में पेश कर देता हूं।
22 रजब को ही कुन्डे की नियाज़ करें
चंद साल से देख रहा हूं कि लोग 22 रजब को कुन्डे की नियाज़ करने से अवामे अहले सुन्नत को रोक रहे हैं और फिर रोकने की जो वजह बयान करते हैं वह इम्तिहाई कमजोर है।
पहली वजह: सैयदना इमाम जाफर सादिक का विसाल (इंतिक़ाल) 22 को नहीं 15 रजब को हुआ है।
दूसरी वजह: 22 रजब को करने में शीयों की मुशाबिहत (नक़ल) है।
पहली वजह का जवाब: इसाल-ए-सवाब कभी भी किसी भी तारीख़ में किया जा सकता है, इसमें शरअ (शरीअत) ने कोई पाबंदी नहीं लगाई है, और मुसलमान में जो नेक काम राएज़ हो अगर शरअन मुमानियत ना हो तो रोकना हरगिज़ दुरुस्त नहीं।
दूसरी वजह का जवाब: शीयों से किसी भी तरह मूशाबिहत नहीं है, उनकी नियत और है, अहले सुन्नत की नियत और, उनका तरीका अलग है और पहले सुन्नत का तरीका अलग, वह विसाले सैयदना अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अ़न्ह की खुशी में करते हैं, और हम सैयदना इमाम जाफर सादिक रज़ियल्लाहु अ़न्ह की मुहब्बत में नियाज़ करते हैं।
साठ साल पहले मुफ़्ती इब्ने मुफ़्ती, मुह़क़्किक़ इब्ने मुह़क़्किक़, वली इब्ने वली सैयिदी सरकार मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द अलैहिर रहमह ने एक फ़तवा पर दस्तखत (साइन) फ़रमाया जो 22 रजब को कुन्डे की नियाज़ करने पर है लिहाज़ा इसे पूरे मुल्क में फ़ैला दीजिए ताकि जो लोग रोक रहे हैं उनकी गलतफहमी दूर हो।
अपील: सैयदना अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अ़न्ह सहाबी-ए-रसूल हैं और सैयदना इमाम जाफर सादिक रज़ियल्लाहु तआला अ़न्ह अहले बैते अतहार हैं, फ़ातिह़ा दोनों हज़रात के नाम दिलाएं, दोनों हमारे हैं।
📚 हसन नूरी गोंडवी
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