रमज़ान शरीफ़ का प्यारा महीना आ चुका है इस महीने में मुसलमान दिन को रोज़ा और रात में तरावीह की नमाज खास तौर से अदा करते हैं। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि
जो कोई बन्दा इस महीने की किसी भी रात में नमाज पढ़ता है तो अल्लाह तआला उसके हर सज्दे के बदले में उसके लिए 1500 नेकियां लिखता है और उसके लिए जन्नत में सूर्ख़ याक़ूत का घर बनाता है और जो कोई रमज़ान का पहला रोजा रखता है उसके पिछले गुनाहों को माफ फरमा देता है और उसके लिए सुबह से शाम तक 70 हजार फ़रिश्ते मगफिरत की दुआ करते रहते हैं (हदीस शरीफ़)
सुब्हानल्लाह! कितनी बरकत वाला महीना है रमजान शरीफ़ का कि मुसलमान नेकियों से इस महीने में माला माल हो जाते हैं।
आप अगर रोज़े नहीं रख रहे हैं तो आप फलाह व कामयाबी से दूर हैं और तरावीह पढ़ने नहीं जाते हैं तो ये भी बड़ी महरूमी और अफसोस की बात है। हम आपकी आसानी के लिए तरावीह के कुछ ज़रूरी मसले लिख रहे हैं गौर से पढ़ कर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बताएं या इस साइट के लिंक को शेयर करें और ढेरों सवाब कमाएं।
1. तरावीह की नमाज हर आक़िल व बालिग़ मुसलमान मर्द और औरत के लिए सुन्नते मुअक्किदा है इस लिए इस को छोड़ना जाएज़ नहीं है। (बहारें शरीअत)
2. तरावीह की नमाज अगर छूट गई तो उसकी क़ज़ा नहीं है। इस लिए कोशिश करें कि कभी छूटने न पाए
3. तरावीह की नमाज में हर दो रकअत पर नीयत करें, लेकिन अगर बीसों रकआत की एक ही साथ यानी एक बार ही कर लें तब भी जाएज़ है
4. बिना किसी मजबूरी व दिक्कत के तरावीह की नमाज बैठ कर पढ़ना मकरूह है बल्कि कुछ फुक़हा ए किराम के नज़दीक तो नमाज ही नहीं होती है
5. कुछ लोग पीछे की सफ में बैठे रहते हैं और जब रुकू में इमाम साहब जाते हैं तब ये नमाज में शामिल होते हैं, ऐसा करना जाएज़ नहीं है ये मुनाफ़िक़ों का काम है
6. रमज़ान शरीफ़ में वित्र की नमाज जमाअत से पढ़ना अफ़ज़ल है, मगर जिसने इशा की फ़र्ज़ जमाअत से नहीं पढ़ी हो वह वित्र की नमाज भी अकेले पढ़े
7. हर चार रकआत के बाद इतनी देर बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकआत पढ़ी हैं
8. इस बैठने में चुप भी बैठ सकते हैं और चाहें तो कोई ज़िक्र, दुरूद शरीफ़ या तिलावत करें या अकेले नफल भी पढ़ सकते हैं, या नीचे की तस्बीह जिसे तस्बीहे तरावीह कहते हैं पढ़ें:
तस्बीहे तरावीह
सुब्हा न ज़िल मुल्कि वल म ल कूत, सुब्हा न ज़िल इज़ ज़ति, वल अ ज़ मति, वल हैबति, वल क़ुद रति, वल किब रिया इ, वल ज ब रूत, सुब्हा नल मलिकिल ह़ैयिल लज़ी, ला यनामु वला यमूतु , सुब्बू हुन, क़ुद दूसुन, रब्बुना व रब्बुल मला इ कति वर रूह़, अल्लाहुम म अजिरना, मिनन नार, या मुजीरु या मुजीरु या मुजीर, बिरह मति क, या अर ह़मर राहिमीन,
9. तरावीह की नमाज मस्जिद में जमाअत से अदा करना अफ़ज़ल है, अगर घर में बा जमाअत अदा की तो जमाअत के छोड़ने कि गुनाह नहीं होगा, मगर वो सवाब नहीं मिलेगा जो मस्जिद में पढ़ने का है
10. यह जाएज़ है कि एक शख्स इशा की फ़र्ज़ नमाज़ और वित्र पढ़ाए और दूसरा शख्स नमाज़े तरावीह पढ़ाए
अल्लाह तआला हम सबको तरावीह की नमाज पूरे रमज़ान शरीफ़ में खुलूस के साथ अदा करने की तौफीक इनायत फरमाए, आमीन
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